नेपाल सीमा से सटे कपिलवस्तु नामक स्थल की काफी महत्ता है। कपिलवस्तु, उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थ नगर जिले में है। यह उत्तर पूर्व रेलवे के गोरखपुर-गोंडा लूप लाइन पर स्थित नौगढ़ नामक तहसील मुख्यालय और रेलवे स्टेशन से 22 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में है। विश्व के अन्य देशों के पर्यटक भी कपिलवस्तु और अस्थि अवशेषों के दर्शन के लिए आते हैं।
राजा शुद्धोधन की राजधानी कपिलवस्तु कभी वैभवशाली नगरी थी। यहां राजकुमार सिद्धार्थ ने कपिलवस्तु में रहते हुए इस संसार की नश्वरता और दुखों को देखकर संन्यास ले लिया था। उन्होंने अपनी तप-साधना पूर्ण होने पर बोध ज्ञान प्राप्त किया और भगवान बुद्ध कहलाए। बाद में पूरे विश्व में शांति, अहिंसा व करुणा का संदेश दिया। ऐसे में कपिलवस्तु स्थित मुख्य स्तूप के दर्शन के लिए प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में विदेशों से बौद्ध अनुयायी आते हैं
गजेटियर के मुताबिक, जिला मुख्यालय से 22 किमी. दूर भगवान बुद्ध की धरती कपिलवस्तु में वर्ष 1898 में अंग्रेज जमींदार डब्ल्यू.सी. पेप्पे ने कुछ खुदाई कराई तो उसके आश्चर्य की सीमा न रही। जब पता चला कि वहां तो एक स्तूप है। स्तूप की खुदाई करने पर एक सेलखड़ी (चौक स्टोन) का बना कलश मिला, जिस पर अशोक कालीन ब्राह्मी लिपि में लिखा था-"सुकिती भतिनाम भगिनी का नाम-सा-पुत-दात्नानाम इयम सलीला-निधाने-बुद्धस भगवते साक्यिानाम।"
इसका इतिहासकारों ने इस तरह अनुवाद किया है "बुद्ध भगवान के अस्थि अवशेषों का यह पात्र शाक्य सुकिती भ्रातृ, उनकी बहनों, पुत्रों और पत्नियों द्वारा दान किया गया है।" यह पात्र आज भी दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में रखा है। भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद उनके अस्थि अवशेष आठ भागों में विभाजित किए गए थे, जिनमें से एक भाग भगवान बुद्ध के शाक्य वंश को भी प्राप्त हुआ था।
पेप्पे को ये अवशेष आठ फीट की गहराई पर मिले थे। उस समय कुछ विद्वानों ने इस स्थान के कपिलवस्तु होने की संभावना की ओर संकेत किया था, किंतु निश्चित रूप से कुछ कहना कठिन था।
वर्ष 1971 में तत्कलीन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के निदेशक के.एम. श्रीवास्तव ने उस स्थान पर खोज व खुदाई का काम कराया। उस दौरान उसी स्तूप में लगभग 10 फीट और गहराई पर, चौकोर पत्थर के एक बक्से में दो सेलखड़ी कलश मिले, जिनमें भगवान बुद्ध के अस्थि अवशेष रखे थे। ये दोनों पात्र और अस्थियां नेशनल म्यूजियम जनपथ, नई दिल्ली में रखे हैं। इसके बाद भी असमंजस की स्थिति बनी रही।
उत्खनन कार्य के फलस्वरूप 1973 में पूर्वी बिहार से पकी मिट्टी की मुद्राएं पहली बार मिलीं, जिन पर लिखा था -"ओम देवपुत्र विहारे, कपिलवस्तु भिक्खु संघ स" एवं "महा कपिलवस्तु, भिक्खु संघ स"। दो मुद्राओं पर भिक्खुओं (भिक्षुओं) के नाम भी लिखे थे। इस अभिलेख ने उत्खनन कार्य को एक निर्णायक मोड़ प्रदान किया। फिर तो आसपास के क्षेत्र में खुदाई कराते ही पूरे कपिलवस्तु का प्राचीन अवशेष उभरकर सामने आ गया। कपिलवस्तु की खोज में के.एम. श्रीवास्तव ने अहम भूमिका निभाई। मौजूदा समय में कपिलवस्तु विश्वभर में बौद्ध धर्म मानने वालों के लिए पवित्र स्थल बन गया है।