चीर-फाड़ से दूर नए ट्रेंड की ओर बढ़ रहा कार्डियोलॉजी

मेडिकल क्षेत्र में अक्सर सर्जरी को लेकर विशेषज्ञों के बीच एक बहस देखने को मिलती है। 60 वर्ष से ज्यादा आयु या गंभीर परिस्थिति के अलावा जिन्हें एनीस्थिसिया नहीं दिया जा सकता, ऐसे मरीज को लेकर उसके परिजन भी उपचार विकल्प नहीं चुन पाते हैं। हालांकि, ऑपरेशन से शरीर पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों से भी इनकार नहीं किया जा सकता। इसलिए सामने आ रही नई तकनीकें ज्यादा जोखिम भरे मामलों में भी बिना सर्जरी के उपचार उपलब्ध करा रही हैं।


भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के अनुसार, देश में हृदयरोग से पीड़ितों की संख्या लगातार बढ़ रही है। ऐसे में देश का कार्डियोलॉजी क्षेत्र चीर-फाड़ से दूर एक नए ट्रेंड की ओर बढ़ रहा है। हाल ही में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), सफदरजंग से लेकर प्राइवेट अस्पतालों तक में इन तकनीकों से उपचार मिल रहा है।


ऐसी ही एक तकनीक हृदय वाल्व को लेकर है। बैलून एट्रियल वाल्वोप्लास्टि, एट्रियल सेप्टल या वेंट्रिकुलर सेप्टल डिफेक्ट क्लोजर के बाद अब ट्रांस कैथेटर एओर्टिक वाल्व रिप्लेसमेंट (टीएवीआर) तकनीक है, जिसे देश के सभी शीर्ष अस्पतालों में प्रमुखता से किया जा रहा है। हालांकि, महाधमनी संकुचन एक गंभीर स्थिति है, जिसमें मृत्यु का जोखिम काफी होता है। ऐसे में कार्डियोलॉजिस्ट या सर्जन ही इसे लेकर फैसला ले सकते हैं।


क्या है टीएवीआर
ये तकनीक उन रोगियों के लिए है जिनमें महाधमनी वाल्व को बदलना जरूरी होता है। अक्सर ज्यादा जोखिम भरे मामले जैसे 60 वर्ष से अधिक आयु, एनीस्थिसिया नहीं दे सकते या गंभीर अवस्था, फेफड़े से जुड़ा रोग आदि में बेहतर इस्तेमाल हो सकता है। एंजियोप्लास्टि की भांति जांघ की नस के जरिए कैथेटर डालते हैं और डॉक्टर पुराने महाधमनी वाल्व में नया कृत्रिम वाल्व डाल देते हैं। इसके बाद कैथेटर को हटाकर पंचर साइट को बंद कर देते हैं और ड्रेसिंग के साथ कवर कर देते हैं।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
साकेत स्थित मैक्स अस्पताल के कार्डियो प्रमुख डॉ. विवेका कुमार बताते हैं कि धीरे-धीरे ही सही, लेकिन कार्डियोलॉजी में नए-नए ट्रेंड आ रहे हैं। सर्जरी को लेकर अक्सर मरीज और उसका पूरा परिवार गंभीर सोच में पड़ जाता है, जबकि अब मेडिकल में इसके बेहतर विकल्प आ चुके हैं।


दिल्ली एम्स के वरिष्ठ कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. राकेश यादव बताते हैं, एक वक्त था जब दिल में धमनियों का ब्लॉकेज होने पर मरीज के पास बायपास सर्जरी या स्टेंट डालने का विकल्प होता था, जबकि दिल से जुड़े अन्य विकार में ऑपरेशन ही जरूरी होता था। खासतौर पर जन्मजात विकारों में, लेकिन अब ट्रेंड बदल रहा है।


केंद्र के अस्पतालों में पहली बार सफदरजंग में हुआ
बीते महीने 68 वर्षीय मरीज राजबीर का सफदरजंग अस्पताल में टीएवीआर तकनीक से उपचार हुआ। अस्पताल की डॉ. प्रीति गुप्ता ने बताया कि केंद्र सरकार के अस्पतालों में ये पहली बार सफदरजंग अस्पताल में हुआ है। डॉ. संदीप बंसल की निगरानी में करीब 3 घंटे ये प्रक्रिया चली थी।